गुप्त वंश के अधीन महत्वपूर्ण शासक: गुप्त, समुद्र (भारतीय नेपोलियन)
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वैश्वीकरण के इस युग में शेष विश्व की तरह भारतीय समाज पर भी अंग्रेजी तथा यूरोपीय प्रभाव पड़ रहा है। बाहरी लोगों की खूबियों को अपनाने की भारतीय परंपरा का नया दौर कई भारतीयों की दृष्टि में उचित नहीं है। एक खुले समाज के जीवन का यत्न कर रहे लोगों को मध्यमवर्गीय तथा वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। कुछ लोग इसे भारतीय पारंपरिक मूल्यों का हनन भी मानते हैं। विज्ञान तथा साहित्य में अधिक प्रगति न कर पाने की वजह से भारतीय समाज यूरोपीय लोगों पर निर्भर होता जा रहा है। ऐसे समय में लोग विदेशी अविष्कारों का भारत में प्रयोग अनुचित भी समझते हैं। भारतीय पर्व
स्वामी दयानन्द द्वारा स्थापित आर्य समाज
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन सम्बन्धी प्रमुख वचन एवं नारे
गोंड - गोंड भारत की जनजाति है , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इनका शासन था ।
ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना दादाभाई नौरोजी ने की थी
खास उद्धृत अंग्रेज़ी भाषा पाठ वाले लेख
अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण व्यवस्था का सबसे प्रामाणिक विवरण बरनी की तारीख-ए-फिरोजशाही में ही मिलता है। अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था के संबंध में बरनी ने लिखा है कि हिंदू और काफिर वस्तुओं की चोरी करते थे। प्रसंगतः, इब्नबतूता की रचना ‘रेहला’ तथा अमीर खुसरो के ‘खजाइनुल फुतुह’ से भी अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण के विषय में जानकारी मिलती है। मुहम्मद बिन तुगलक की मुद्रा-व्यवस्था का वर्णन करते हुए बरनी ने लिखा है कि, ‘प्रत्येक हिंदू का घर टकसाल बन गया था।’
करनाल की लड़ाई (मुगल नादिर शाह से हार गए)
हुमायूँ ने सरहिंद की लड़ाई में सिकंदर सूरी को हराकर सिंहासन पर पुनः कब्जा कर लिया।
दिल्ली सल्तनत के दौरान, निम्नलिखित राजवंश एक के बाद एक फलते-फूलते रहे:
दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत खड़ी बोली और ब्रजभाषा का प्रयोग राजदरबार के साथ-साथ साहित्यिक रचनाओं में भी किया जाता था। इसी समय एक भाषा के रूप में राजस्थानी भाषा का भी विकास हुआ। इसी काल में ‘आल्हा-उदल’ और ‘विशालदेवरासो’ जैसी प्रसिद्ध राजस्थानी गाथाओं की रचना हुई। इसी काल में साहित्य की भाषा के रूप में अवधी का विकास हुआ, जिसका सबसे प्राचीन काव्य मुल्ला दाउद का ‘चंदायन’ है। मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पद्मावत’ भी ऐतिहासिक दृष्टि से एक उपयोगी रचना है। इस प्रकार आरंभिक मध्यकाल की जानकारी के लिए संस्कृत और हिंदी के साथ-साथ कन्नड़ और तमिल भाषा के साहित्यिक ग्रंथ भी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत हैं।
फुतूह-उस-सलातीन (अब्दुल्ला मालिक इसामी)